
विचार-मंथन-1
कोविड 19 के इस संक्रमण काल के दौरान मानव जीवन महत्वपूर्ण परिवर्तनों के दौर से गुजर रहा है। वर्तमान की परिस्थितियों में शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और सामाजिक स्तर पर जितने गहरे रूप से मनुष्य प्रभावित हुआ है उतना अपने वर्तमान के जीवन काल में शायद ही कभी हुआ हो। उसकी दुनिया में ऐसा विराम कभी नहीं आया। इस विराम ने जीवन के प्रति दृष्टिकोण को पूरी तरह बदल दिया है। इसका प्रभाव होगा कि वह अब बहुत एकाकी हो जाएगा या बहुत सामाजिक। अपने परिवार के प्रति उसकी सोच पूर्व की अपेक्षा भिन्न होगी, अपनी जिम्मेदारियों का अहसास नए प्रकार का होगा और अपने भविष्य के बारे में वह अब एकदम नए प्रकार से सोचेगा।
इसका असर बालमन पर किस प्रकार से रहा है, यह भी गहन चिंतन का विषय है। ऑनलाइन क्लासेस ‘पाठशाला शिक्षा- शिक्षण’ व्यवस्था की पूर्ति नहीं कर सकती और न ही उसका स्थान ले सकती है। वस्तुतः यह तात्कालिक तौर पर जुड़ाव का एक माध्यम होने की भूमिका निबाह सकती है।
इस दौरान ऑनलाइन क्लासेस पर जितना जोर दिया गया उससे स्पष्ट ज्ञान होता है कि प्रत्येक संस्था पूरी शिद्दत से अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने में लगी हुई थी। एक परिस्थिति का उदाहरण देखिए कि दो या तीन कमरों का फ्लैट; अभिभावक काम करने वाले; दोनों की अपनी- अपनी चिंताएं; कार्य जगत को लेकर दोनों के अपने- अपने संकट; इकलौती संतान जो अपने घर से बाहर खेलने के लिए नहीं जा सकती और जिसके कारण वितृष्णा से भरा मन। ऐसे में ऑनलाइन क्लासेज ने बच्चे को अध्ययन से प्रेम करना सिखाया होगा! ऐसे में उस बालमन का भावनात्मक विकास, बुद्धि का तर्क सम्मत विकास किस प्रकार का हुआ होगा, इसकी कल्पना की जा सकती है। बच्चे को केंद्र में रखकर संस्थानों की आपसी प्रतिस्पर्धा का मैदान तैयार हुआ और श्रेष्ठ से श्रेष्ठतम, उन्नत से उन्नत तकनीक का प्रयोग करते हुए अपना वर्चस्व दिखाने की कोशिश का नया सिलसिला प्रारंभ हुआ। इस दौर में किसका भविष्य सँवरा, किसका बिगड़ा यह भविष्य ही देने के लिए ऑनलाइन शिक्षा- शिक्षण उचित नहीं है।